Sunday, June 2, 2013

संत महात्मा

आज , दोपहर के कुछ 12 बजे का वक़्त था, दरवाज़े की घंटी बजी ! मैंने दरवाज़ा खोल तो एक सुकन्या :-) दरवाज़े पे खड़ी थी । मुझे देखते ही उसने बोलना शुरू किया - "दीदी ! संत श्री आसाराम बापू के आश्रम से एक पत्रिका निकलती है ,'ऋषिप्रसाद ', क्या आप उसका सालाना अभिदान लेना चाहेंगी ,मात्र 60 रूपए में ?"

उसे तो मैंने मना कर दिया .लेकिन उसके जाने के बाद मेरे मन ने  एक सवाल पुछा मुझसे .............संत श्री आसाराम बापू ! आखिर किसने दिया उन्हें संत का दर्जा ? समाज ने ! या उन्होंने स्वयं ?

पहले ज़माने में लोग कठोर तपस्या करके, लगनशीलता से , मानव सेवा करके ये उपाधि पाते थे । ऋषि-मुनि अपना सर्वस्व त्याग कर मानव उत्थान के लिए कर्म करते थे ,लेकिन आज इक्कीसवी सदी में ,ऋषि या संत का दर्जा पाना कितना सरल हो गया है  |

बस भगवा वस्त्र पहनो ,चन्दन का टीका लगा कर,साधू वेश में एक बढ़िया सा फोटो खिंचवा लो और अखबार में विज्ञापन निकलवा दो ............
                     "फलाना संत आ रहे हैं आपके शहर ,उनकी अमृत वाणी सुनने के लिए जल्द ही पंजीकरण कराएं सिर्फ 500 रुपए में ।"

और यकीन मानिये कम से कम 200 पंजीकरण हो ही जायेंगे ,200 लोगो के 500 रूपए...हो गये पूरे एक लाख ...और लाखो की तादात वाले शहर में 200  तो मैंने न्यूनतम कहा है ...,अधिकतम तो कुछ भी हो सकता है ।
खैर ! ये बताइए क्या आपने कभी सुना है क़ी ऋषि विश्वामित्र या सांई बाबा ( सांई बाबा भी एक ऋषि ही थे ) या स्वामी विवेकानंद अपने साथ अंगरक्षक ले कर चलते थे ,एक रक्षक दल उनके साथ चलता था ,सुना हैं कभी?? नही ना !!
और भला वो क्यों चलते अंगरक्षकों के साथ ,उन्हें तो जीवन से मोह था ही नही ,वो तो जन्म और म्रत्यु के भेद को जानते थे । सच्चा संत अपने जीवन से प्यार नही करता बल्कि समाज कल्याण के लिए जीवन त्यागने में भी पीछे नही रहता , तो आज के  तथाकथित संत क्यों चलते है रक्षक दल के साथ ?

    मेरठ में कुछ समय पहले हुए आसाराम के समारोह में ,श्री आसाराम जी ने अपने लिए एक ऐसा सिंहासन बनवाया जो  चारो तरफ से बुलेटप्रूफ कांच से घिरा था ? अगर वो सच्चे  संत हैं तो उन्हें अपने जीवन से इतना मोह तो नही होना चाहिए कि अपनी सुरक्षा   के इतने पुख्ता इंतज़ाम और मानव जाति से इतना डर । ये कैसी ऋषिता है?

    दूसरी तरफ ,स्वयं को महान घोषित करने के लिए उन्होंने महाराष्ट्र में एक होली समारोह में लोगो क़ी भीड़ पर जल वर्षा करके यह जताया कि उनके स्पर्श से जल अमृत तुल्य हो गया ? वाह ! मुझे लगता है समुद्र मंथन के समय समुद्र से निकलने  वाले अमृत के लिए देव और असुर बेकार में ही लड़ रहे थे,उन्हें श्री आसाराम जी के पास ही आ जाना  चाहिए  ।

इन तस्वीरों को देखिये ,क्या आपको नही लगता कि इनका एक अच्छा खासा  photosession हुआ होगा !!




    हे प्रभु !क्या होगा ऐसे समाज का जिसमे रहते हो ढोंगी बाबा और उनके मूर्ख अनुयायी |
क्या आज कि पढ़ी लिखी पीढ़ी संत और ढोंगी में अंतर नही कर पा रही है ???
 आपके विचारों का स्वागत है .............................................

Wednesday, July 20, 2011

अपराधबोध !!!

आज मेरे मन में एक विचार कौंधा , जिसने मेरे जेहन को अन्दर तक हिला दिया !! 
                                     फांसी !!!!


""plz मुझे छोड़ दो ! मुझे माफ़ कर दो! मुझे यह सजा मत दो !!!!!""
मैं  जिंदगी भर मानवसेवा करूंगा . मेरा यह अपराध मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा गुनाह था ,जो मै क्रोध और विवशता में कर दिया था ,जिसका मुझे बहुत  पछतावा है .मैं  अब बदल गया हूँ  ,""




क्या यही शब्द निकलते होंगे उस अपराधी के मुंह से जिसके कदमों की दूरी फांसी के तख्ते से महज़ कुछ मीटर होती होगी .
उसके दिल का दर्द और अपराध बोध की सीमा क्या होती होगी !!!???
क्या छलकते होंगे उसके आँखों से आंसू ,जब लगता होगा उसे की अब खत्म हो जाएगी जिंदगी मेरी .
शायद दुनिया में वो इंसान ऐसा होगा जो जानता होगा अपनी मौत का समय व तारीख .


दिल दहलता होगा उसका यह सोच कर  की एक ही झटके में प्राण पखेरू उड़ जायेंगे ....
 और क्यों न दहले ? एक झटका तो कहने की बात है ,कुछ मिनट तो जरुर लगते होंगे प्राण निकलने में , और उस समय की तड़प के बारे में सोच सोच कर आंसू भर जाते होंगे ,हाथ पैर कांपते होंगे ! कितना भयानक होता होगा उसका वह समय ........
फांसी से पहले भी तो अन्धकार में डाल दिया जाता है अपराधी को , जब काले कपडे से मुंह ढका  जाता है उसका. . तब भी तो घुटन होती ही होगी ना




भले ही दुनिया का सबसे शातिर अपराधी हो वह ,लेकिन उस समय बन जाता है दुनिया का सबसे असहाय व्यक्ति . चाहे उसने किया हो बहुत  ही जघन्य पाप ,पर उसकी अपराध बोध की सीमा और तड़प जो फांसी मिलने से कुछ समय पहले उसके जेहन में होती होगी ,उसे बस वही जान सकता है  .
कितना पश्चाताप होता होगा उसे अपने कृत्य पे ,जिसने उसे आज असमय ही  मौत के सामने खड़ा कर दिया .


धडाक s ...s ....s ..s ....s ..s . .......एक पल की तड़पडाहट और जिंदगी का अंत !!!
पीछे रह जाते है कुछ सवाल ............
क्या इसी लिए पैदा होते है अपराधी ...........?
क्यों बनाता है भगवान्  इन्हें अपराधी .................?
आखिर क्यों किया इसने ये कुकृत्य ..........................................?
और इन सवालों के साथ  रह जाता है बस ....................................................."शून्य"......................................................

Monday, June 6, 2011

विद्रोह ..


जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है , यही रवैया अब कांग्रेस के साथ अपनाना होगा.
अब तक सामने आए भ्रष्टाचार, घोटाले आदि के सभी मामलों में कांग्रेसी नेताओं का हाथ होना इसी बात को दर्शाता है की ,कांग्रेस की सरकार बनी है तो देश को बर्बाद करने के लिए.
बाबा रामदेव, अन्ना हजारे आदि अगर देश के संरक्षक बनकर आगे आते है तो कांग्रेसी सरकार उनकी मांगों का दमन करने और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अपने ही देश में आतंक फ़ैलाने से नही चूकती .
जी हाँ ! इस तरह भरी जनसभा में लाठियां बरसाना ,आग लगाना ,निहत्थी जनता पर आंसू गैस के गोले दागना क्या किसी आतंक से कम है !
आज सोनिया गाँधी ने ओसामा-बिन- लादेन जैसे खूंखार आतंकवादी की जगह ले ली है ,जो अपने ही देश में आग लगा रही है .लेकिन यह कहना भी ठीक होगा कि इन नेताओं से तो वे आतंकवादी ही अच्छे है क्यूंकि कम से कम आम जनता को उनसे कोई भलाई कि उम्मीद तो नही होती और कम से कम वो अपने घर में तो आग नही लगाते.
अगर अपनी मांगो को मनवाने के लिए जनता शांतिपूर्वक रवैया अपनाती है और इस पर सरकार लाठियां बरसाती है तो अब ये शांतिपूर्वक रवैया छोड़ना होगा .
भगवान राम ने भी लंका पर चढ़ाई करने के लिए मार्ग के लिए समुद्र से तीन दिन तक प्रार्थना की थी, परन्तु जब इस पर भी समुद्र राज़ी न हुआ तो भगवान ने अपने क्रोध और बाणों का उपयोग किया जिससे घबराकर समुद्र उनके चरणों में आ गिरा और मार्ग दे दिया .
इसी तरह राम के इस देश में यदि राक्षस स्वरुप सरकार पनप रही है तो उसे अपने आक्रोश से कुचलना ही बेहतर विकल्प है .और जिस तरह सरकार अपनी ही जनता पर आग बरसाने से नही घबराती उसी तरह उसी तरह ऐसे राजा के ठिकानो पर ही आग लगा देनी चहिये,उतार फेकना चहिये उस राजा को गद्दी से जिसका न तो स्वयं कोई स्वाभिमान है और ना ही व प्रजा के स्वाभिमान की रक्षा कर सकता है....

Saturday, April 23, 2011

frustration in people's mind


Yesterday , I went to canara bank, opposite to Meerut university gate , I deposited some of the money there and was coming back in the scorching heat, the sun was at its height, while i was crossing Tej garhi crossing , an old man was coming from the other side with his grand son on the cycle.


i was on my scooter. the man was cycling in an absurd manner. i can say,the handle of cycle
wasn't in the control of man. as his cycle was just about to ram into my scooter, i applied strong breaks.................. and thanks to god, a mishap debarred.
the man started yelling on me.showing others that it was my mistake. huh!!!
" badi jaldi hai", the man said. "dekh kr nahi chala sakti".
i was just shocked, as it was not my mistake!!
the people around, who saw the incident, told me "koi nahi beta, tum jao".
My heart said to me " saala bhalai ka zamana hi nai hai,ek to bacha liya,upar se mujh pe hi chilla rha hai ". it was just like " ulta chor kotwal ko daante"......
it shows nothing but frustration of people's daily life in their mind.

In today's rat race,people are so busy that they do not have time for their selves,they get this frustration may be due to loads of work, or due to family conditions or the reason may be some other...............but people use to divest their frustration on others in one or other manner.
TO BHAIYA, MERI MAANO TO ZAMANA KHARAB HAI...BACHKE CHALA KRO...........:-)