आज , दोपहर के कुछ 12 बजे का वक़्त था, दरवाज़े की घंटी बजी ! मैंने दरवाज़ा खोल तो एक सुकन्या :-) दरवाज़े पे खड़ी थी । मुझे देखते ही उसने बोलना शुरू किया - "दीदी ! संत श्री आसाराम बापू के आश्रम से एक पत्रिका निकलती है ,'ऋषिप्रसाद ', क्या आप उसका सालाना अभिदान लेना चाहेंगी ,मात्र 60 रूपए में ?"
उसे तो मैंने मना कर दिया .लेकिन उसके जाने के बाद मेरे मन ने एक सवाल पुछा मुझसे .............संत श्री आसाराम बापू ! आखिर किसने दिया उन्हें संत का दर्जा ? समाज ने ! या उन्होंने स्वयं ?
पहले ज़माने में लोग कठोर तपस्या करके, लगनशीलता से , मानव सेवा करके ये उपाधि पाते थे । ऋषि-मुनि अपना सर्वस्व त्याग कर मानव उत्थान के लिए कर्म करते थे ,लेकिन आज इक्कीसवी सदी में ,ऋषि या संत का दर्जा पाना कितना सरल हो गया है |
बस भगवा वस्त्र पहनो ,चन्दन का टीका लगा कर,साधू वेश में एक बढ़िया सा फोटो खिंचवा लो और अखबार में विज्ञापन निकलवा दो ............
"फलाना संत आ रहे हैं आपके शहर ,उनकी अमृत वाणी सुनने के लिए जल्द ही पंजीकरण कराएं सिर्फ 500 रुपए में ।"
और यकीन मानिये कम से कम 200 पंजीकरण हो ही जायेंगे ,200 लोगो के 500 रूपए...हो गये पूरे एक लाख ...और लाखो की तादात वाले शहर में 200 तो मैंने न्यूनतम कहा है ...,अधिकतम तो कुछ भी हो सकता है ।
खैर ! ये बताइए क्या आपने कभी सुना है क़ी ऋषि विश्वामित्र या सांई बाबा ( सांई बाबा भी एक ऋषि ही थे ) या स्वामी विवेकानंद अपने साथ अंगरक्षक ले कर चलते थे ,एक रक्षक दल उनके साथ चलता था ,सुना हैं कभी?? नही ना !!
और भला वो क्यों चलते अंगरक्षकों के साथ ,उन्हें तो जीवन से मोह था ही नही ,वो तो जन्म और म्रत्यु के भेद को जानते थे । सच्चा संत अपने जीवन से प्यार नही करता बल्कि समाज कल्याण के लिए जीवन त्यागने में भी पीछे नही रहता , तो आज के तथाकथित संत क्यों चलते है रक्षक दल के साथ ?
मेरठ में कुछ समय पहले हुए आसाराम के समारोह में ,श्री आसाराम जी ने अपने लिए एक ऐसा सिंहासन बनवाया जो चारो तरफ से बुलेटप्रूफ कांच से घिरा था ? अगर वो सच्चे संत हैं तो उन्हें अपने जीवन से इतना मोह तो नही होना चाहिए कि अपनी सुरक्षा के इतने पुख्ता इंतज़ाम और मानव जाति से इतना डर । ये कैसी ऋषिता है?
दूसरी तरफ ,स्वयं को महान घोषित करने के लिए उन्होंने महाराष्ट्र में एक होली समारोह में लोगो क़ी भीड़ पर जल वर्षा करके यह जताया कि उनके स्पर्श से जल अमृत तुल्य हो गया ? वाह ! मुझे लगता है समुद्र मंथन के समय समुद्र से निकलने वाले अमृत के लिए देव और असुर बेकार में ही लड़ रहे थे,उन्हें श्री आसाराम जी के पास ही आ जाना चाहिए ।
इन तस्वीरों को देखिये ,क्या आपको नही लगता कि इनका एक अच्छा खासा photosession हुआ होगा !!
हे प्रभु !क्या होगा ऐसे समाज का जिसमे रहते हो ढोंगी बाबा और उनके मूर्ख अनुयायी |
क्या आज कि पढ़ी लिखी पीढ़ी संत और ढोंगी में अंतर नही कर पा रही है ???
आपके विचारों का स्वागत है .............................................
उसे तो मैंने मना कर दिया .लेकिन उसके जाने के बाद मेरे मन ने एक सवाल पुछा मुझसे .............संत श्री आसाराम बापू ! आखिर किसने दिया उन्हें संत का दर्जा ? समाज ने ! या उन्होंने स्वयं ?
पहले ज़माने में लोग कठोर तपस्या करके, लगनशीलता से , मानव सेवा करके ये उपाधि पाते थे । ऋषि-मुनि अपना सर्वस्व त्याग कर मानव उत्थान के लिए कर्म करते थे ,लेकिन आज इक्कीसवी सदी में ,ऋषि या संत का दर्जा पाना कितना सरल हो गया है |
बस भगवा वस्त्र पहनो ,चन्दन का टीका लगा कर,साधू वेश में एक बढ़िया सा फोटो खिंचवा लो और अखबार में विज्ञापन निकलवा दो ............
"फलाना संत आ रहे हैं आपके शहर ,उनकी अमृत वाणी सुनने के लिए जल्द ही पंजीकरण कराएं सिर्फ 500 रुपए में ।"
और यकीन मानिये कम से कम 200 पंजीकरण हो ही जायेंगे ,200 लोगो के 500 रूपए...हो गये पूरे एक लाख ...और लाखो की तादात वाले शहर में 200 तो मैंने न्यूनतम कहा है ...,अधिकतम तो कुछ भी हो सकता है ।
खैर ! ये बताइए क्या आपने कभी सुना है क़ी ऋषि विश्वामित्र या सांई बाबा ( सांई बाबा भी एक ऋषि ही थे ) या स्वामी विवेकानंद अपने साथ अंगरक्षक ले कर चलते थे ,एक रक्षक दल उनके साथ चलता था ,सुना हैं कभी?? नही ना !!
और भला वो क्यों चलते अंगरक्षकों के साथ ,उन्हें तो जीवन से मोह था ही नही ,वो तो जन्म और म्रत्यु के भेद को जानते थे । सच्चा संत अपने जीवन से प्यार नही करता बल्कि समाज कल्याण के लिए जीवन त्यागने में भी पीछे नही रहता , तो आज के तथाकथित संत क्यों चलते है रक्षक दल के साथ ?
मेरठ में कुछ समय पहले हुए आसाराम के समारोह में ,श्री आसाराम जी ने अपने लिए एक ऐसा सिंहासन बनवाया जो चारो तरफ से बुलेटप्रूफ कांच से घिरा था ? अगर वो सच्चे संत हैं तो उन्हें अपने जीवन से इतना मोह तो नही होना चाहिए कि अपनी सुरक्षा के इतने पुख्ता इंतज़ाम और मानव जाति से इतना डर । ये कैसी ऋषिता है?
दूसरी तरफ ,स्वयं को महान घोषित करने के लिए उन्होंने महाराष्ट्र में एक होली समारोह में लोगो क़ी भीड़ पर जल वर्षा करके यह जताया कि उनके स्पर्श से जल अमृत तुल्य हो गया ? वाह ! मुझे लगता है समुद्र मंथन के समय समुद्र से निकलने वाले अमृत के लिए देव और असुर बेकार में ही लड़ रहे थे,उन्हें श्री आसाराम जी के पास ही आ जाना चाहिए ।
इन तस्वीरों को देखिये ,क्या आपको नही लगता कि इनका एक अच्छा खासा photosession हुआ होगा !!
हे प्रभु !क्या होगा ऐसे समाज का जिसमे रहते हो ढोंगी बाबा और उनके मूर्ख अनुयायी |
क्या आज कि पढ़ी लिखी पीढ़ी संत और ढोंगी में अंतर नही कर पा रही है ???
आपके विचारों का स्वागत है .............................................